” FASHION ” ये शब्द सुनते ही सबसे पहले दिमाग में क्या आता है ? आप बिलकुल सही सोच रहे है – ” कपडे “। कपड़ो के शौक़ीन तोह सभी लोग होते है। सभी को जो मार्केट में नए ट्रेंडिंग कपडे आते है वह पहनने का शौक होता है। लेकिन FASHION का फंडा भी हमें समझना होगा। FASHION मुख्य तौर पर दो तरह के होते है।
१. SLOW FASHION
२. FAST FASHION
चलिए जानते है, ये होता क्या है।
पहले के ज़माने में मौसम के मुताबिक कपडे बनाये जाते थे। जैसे की सर्दियों में गरम कपडे और गर्मी में कॉटन के कपडे। इसे ही SLOW FASHION कहा जाता है।
लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब तोह हर हफ्ते नए नए ट्रेंड आते है और चले जाते है। यही होता है FAST FASHION। हमारे सेलिब्रिटी यही ट्रेंड को फॉलो करते है। और उनका देखकर हम आम लोग भी वही अपनाते है। FAST FASHION ने २०२० में २५.१ बिलियन डॉलर का उत्पादन किया। लेकिन यही FAST FASHION हमें और इस दुनिया को बर्बाद कर रहा है।
जरा इस फोटो को ध्यान से देखिये।इसे देखकर आपको लगेगा की ये कचरा है, लेकिन ये कचरा नहीं बल्कि ये वो कपडे है जिसे किसीने भी ख़रीदा नहीं। ये तस्वीर चीले की अटाकामा डेजर्ट की है। और फैशन इंडस्ट्री ने इसे अस्वीकार(reject) किया। वहा ६०००० टन कपडे फेके हुए है ( cloth dump )। इन कपड़ो में कोई खराबी नहीं है , बस इन्हे किसीने भी नहीं ख़रीदा। ऐसाही एक dump केनिया में भी है।
चलिए जरा विस्तार में जानते है की FAST FASHION क्या है है ?, FAST FASHION का हमारे ऊपर क्या परिणाम होता है ?, FAST FASHION का पर्यावरण पर क्या असर होता है ?
FAST FASHION क्या है ?
पहले के ज़माने में मुख्यता चार मौसम को ध्यान में रखकर कपडे बनाये जाते थे। साल १९०० से १९५० तक फैशन इंडस्ट्री ने बहुत धीरे प्रगति की। लेकिन पिछले २५ से ३० सालो में इस इंडस्ट्री ने तेजी से प्रगति कर रहा है। FAST FASHION वाली कम्पनिया बाजार में नए नए ट्रेंड जल्द से जल्द लाने के लिए चीजे तैयार करती है।
अब कपडे बनाने वाली कम्पनिया हर हफ्ते नए नए ट्रेंड लाती है यानि सालाना ५२ बार कम्पनिया नए कपडे जारी करती है। क्योकि कंपनी को ये ३ महीनो बाद बदलने वाला FASHION स्लो लगने लगा था। अगर लोग ३ महीने बाद शॉपिंग करने लगे तोह कंपनी को जल्दी मुनाफा (PROFIT) कैसे होगा। इसीलिए उन्होंने FAST FASHION को लाया। लेकिन ये ट्रेंड जितने जल्दी आता है, उतनी ही जल्दी चला भी जाता है।
इस संकल्पना ने हर हफ्ते नए ट्रेंड के लिए फैशन शो किये। ज्यादा स्टाइल मतलब ज्यादा बिक्री , ज्यादा बिक्री मतलब ज्यादा मुनाफा यानि कंपनी का फायदा ही फायदा था। इस फैशन ट्रेंड में सबसे फायदा लिया इन कम्पनियो ने – Primark, H&M, Shein, and Zara.
H&M जैसे ब्रांड साल में १२ – १६ कलेक्शन लाते है , वही ZARA साल में २४ कलेक्शन लाती है। लेकिन इसमें २ चीजे महत्वपूर्ण है – एक की मैन्युफैक्चरर जल्दी कपडे बनाये और दूसरा की कस्टमर जल्दी कपडे ख़रीदे। एक स्टडी कहती है, की एक अमेरिकन ३० किलो / वर्ष कपडे कचरे में फेकता है। क्योकि वो कपडे फैशन में नहीं है।
FAST FASHION कैसे वर्क करता है ?
अब बहुत सी FAST FASHION वाली कम्पनिया जो कपडे ट्रेंड में नहीं है उसे या तोह फेक देती है , या फिर उन डिज़ाइन को कोई चुरा न ले इसलिए उन कपड़ो को जला देती है। H&M कंपनी २०१३ से १२ टन कपडे जला देती है। क्योकि नया कलेक्शन आये तब दुकान में पुराने कपडे ना दिखे और लोगो को लगे की अगर अभी इसे नहीं ख़रीदा तोह ये कलेक्शन चला जायेगा।
कई नए ब्रांड के कपडे भारत आते है। फिर उनसे धागा बनाया जाता है। और जो कपडे जलाये जाते है उसका हमारे पर्यावरण पर असर होता है।
एक और कंपनी है, जो फ़ास्ट से भी FAST FASHION को अपनाती है। ये कंपनी उसी देश से है, जिस देश को हमारे भारत में बैन किया है – चीन। और कंपनी का नाम SHEIN . साल २०२२ में अमेरिका में SHEIN ये एप्लीकेशन AMAZON से भी ज्यादा डाउनलोड हुआ। SHEIN ये एक चीनी कंपनी है। ये कंपनी इंटरनेट से देखकर जो कपडे ट्रेंड कर रहे उन्हें काम दामों में बनता है और उसे वेस्टर्न देशो में बेचता है।
कई डिज़ाइनर का ऐसा कहना है, की SHEIN कंपनी उनके डिज़ाइन चुराता है। लेकिन ग्राहक को इससे फरक नहीं पड़ता की ओरिजिनल डिज़ाइन किसका है। उन डिज़ाइनर को उनका सही दाम मिल भी रहा है या नहीं। क्योकि हमें तोह बस कपड़ो से मतलब है, की हमें कितने सस्ते दामों में और कितनी जल्दी ये कपडे मिल रहे है। लेकिन कपडे सस्ते है इसका मतलब ये नहीं की उसकी कोई कीमत नहीं। क्या आप जानते है आपके कपड़ो की सही कीमत क्या है ?
कपड़ो की कीमत क्या है ?
आप लोगो ने देखा होगा की , पिछले कुछ सालो से कपड़ो की गुणवत्ता (quality) ख़राब हो गयी है। जाहिर सी बात है , कपडे अगर सस्ते मिल रहे है मतलब कुछ तोह गड़बड़ जरूर होगी न। क्युकी कोई भी कंपनी अपना नुकसान करके बिज़नेस तोह करेगी नहीं।
FAST FASHION वाले कंपनियों को ये बात पता है की , उन्हें फ़ास्ट कपडे बनाने है , टिकाऊ नहीं। कपडे लम्बे समय तक टिकेंगे तोह आप उन्हें जल्दी बदलने की सोचेंगे नहीं। FAST FASHION वाली कंपनी ने सोचा की गुणवत्ता घटा रहे है तोह लोगो को पता चल जायेगा और लोग हमारे कपडे खरीदेंगे नहीं। लेकिन फिर उन्होंने कपड़ो का दाम भी कम कर दिया ताकि लोगो को लगे की , इतने कम कीमत (price) में कपडे मिल रहे है तोह १-२ बार भी चल जाये तोह काफी है।हम सभी यही सोचकर कपडे खरीदते है।
चलो कपड़ो की ये कीमत तोह कम हो गयी , लेकिन उसकी असली कीमत का क्या ? असली कीमत का मतलब है , कपडे बनाने के लिए सिर्फ पैसे खर्च नहीं होते। बल्कि पानी भी खर्च होता है। फैशन इंडस्ट्री दुनिया की दूसरे नम्बर की water consuming इंडस्ट्री है।
जैसे की एक कॉटन का टी-शर्ट बनाने के लिए २७०० लीटर पानी खर्च होता है। ये उतना ही पानी है, जितना एक इन्सान २.५ साल में पानी पिता है। एक इन्सान १० साल में जितना पानी पिता है , उतना पानी एक जीन्स बनाने के लिए लगता है। ये है हमारे कपड़ो की असली कीमत।
पर्यावरण पर FAST FASHION का क्या परिणाम होता है ?
१. कज़ाकस्तान और उजबेकिस्तान के बिच में एक तालाब है। जो “अरल सी ” (ARAL SEA) के नाम से जाना जाता है। ये तालाब दुनिया के चौथे नंबर का सबसे बड़ा तालाब था। लेकिन आज की तारीख में ये पूरी तरह से सुख चूका है। जिसका कारन है FAST FASHION। कपास की खेती करने के लिए यहाँ का पानी इस्तेमाल किया गया।
हमारे कपडे कपास से बनते है। और कपास एक जल गहन फसल (WATER INTENSIVE CROP) है। जल गहन फसल मतलब कपास के लिए सबसे ज्यादा पानी लगता है। इसके परिणाम स्वरुप कुछ क्षेत्र में पानी की कमी हो सकती है। कपास एक ऐसी फसल है जिसे आर्दता (MOISTURE) पसंद है। जो ज्यादा सूरज की किरणों वाले प्रदेश में होता है। यानि गरम प्रदेश में कपास की खेती की जाती है। गरम प्रदेश में पहले ही पानी की कमी होती है। चीन के बाद कपास की खेती भारत में की जाती है।
२. वैसेही कपास सफ़ेद रंग का होता है। लेकिन हमारे कपडे अलग अलग रंग के। इसके लिए कपड़ो को ब्लीच किया जाता है। डाई का इस्तेमाल किया जाता है। हम जानते है की डाई कितनी हानिकारक होती है। उसमे कार्सिनोजन होता है। हम जब कपडे धोते है तब कितना काला पानी कपड़ो से निकलता है। ये काला पानी डाई की वजह से निकलता है।
जब ये पानी नदी , तालाब , समंदर में जाता है , तब वो उस पानी को भी काला कर देती है। जिसकी वजह से पानी में जो वनस्पति है उनतक सूरज की किरणे नहीं पहुंच पाती। जिसके परिणाम स्वरुप वो वनस्पति फोटोसिंथेसिस नहीं कर पाती और उनकी संख्या कम होती है। वनस्पति ऑक्सीजन देती है। जिसकी वजह से पानी में जो ऑक्सीजन है वो कम हो जाता है और बाकि जीवो का बचना मुश्किल होता है।
हम पानी का इस्तेमाल खेती के लिए करते है। और जब ऐसा डाई वाला पानी खेती में इस्तेमाल होता है , तब वो फसल में मिलता जाता है। और फसल से हमारे शरीर में भी जाता है।
३. जब कपडे जलाते है , तब उससे ग्रीनहाउस गैस निकल के पर्यावरण में मिल जाता है। ग्रीनहाउस गैस पर्यावरण के लिए हानिकारक है। ज्यादा से ज्यादा कपडे पॉलीस्टर से बनता है। और पॉलीस्टर क्रूड आयल से बनता है। जब जलते है , तब उसमे क्रूड आयल जलने जैसा है।
हमें क्या करना चाहिए ?
हमें समझना होगा की हमें हमारे पैसे कहा खर्च करने होंगे। हम ये नहीं कहते की आप शॉपिंग करना छोड़ दे। लेकिन हमारा एक छोटा प्रयास हमारे पर्यावरण को बचाने में मदत कर सकता है।
हम हमारे कपडे ज्यादा दिन या ज्यादा बार इस्तेमाल कर सकते है। अब तोह हमारे सेलेब्रेटी भी एक कपडे को दोबारा इस्तेमाल करते देख रहे है। इससे हम पर्यावरण की हानि ३० % से काम कर सकते है। हमें एक कपडे को अगर १० बार इस्तेमाल करते है तोह अब से उसे १४-१५ बार इस्तेमाल करना होगा। हमें FAST FASHION का नहीं SLOW FASHION को अपनाना चाहिए।
और हम कपड़ो को दुसरो को भी दे सकते है। जैसे, ऐसे बहुत से अनाथ आश्रम है, जहा हम हमारे कपडे दान दे सकते है। उदा. – गूंज एक ऐसाही NGO है। यहाँ वो श्रम के बदले कपडे प्रदान करता है।
हमारे देश में पहले से एक रीत है, की हम हर एक चीज को बार बार इस्तेमाल करना सिखाते है। और हमारे पूर्वज जो सिखाते थे उसमे विज्ञान होता था। लेकिन आजकल हम हमारे देश के लोग जो बताते थे, उसे भूलकर पाश्चत्य संस्कृति को अपना रहे है। हम अमीर हो या गरीब , लेकिन हम हमारे कपडे कचरे में नहीं फेकते है। बल्कि हम हमारे कपडे कचरा जमा करने वाली आंटी को देते है। क्योकि हमरे संस्कृति में कपड़ो को फेकना है ही नहीं। हमें इस चीज का गर्व होना चाहिए। और यही अच्छा है। ताकि कपड़ो का RE-USE हो सके।
हमारी नानी दादी पुराने कपड़ो से चटाई बनाती थी , दरवाजे का पैर पोछने का कपडा (DOOR MAT) बनाती थी। हमें भी वही अपनाने की जरुरत है।आज फैशन इंडस्ट्री ३.५ करोड़ लोगो को रोजगार प्रदान करती है। हम किसी भी इंडस्ट्री का विरोध नहीं करती। लेकिन ये FAST FASHION जैसी चीजों को हमारी जिंदगी का हिस्सा बनाती है , ये गलत है।
हम ऐसे कपडे ख़रीदे जो रीसायकल कॉटन से बने हो। या फिर कुछ फुटपाथ पर कम कीमत में ब्रांडेड कपडे मिलते है , वो ख़रीदे। ये ऐसे कपडे होते है , जिन्हे फैशन इंडस्ट्री ने REJECT किया होता है, या फिर इनमे कोई छोटा डिफेक्ट होता है। हम अगर १ % भी हमारे पर्यावरण को बचाने में कामियाब हुए तोह ये अच्छी बात है।
कपड़ो की प्राइस टैग से भी ज्यादा कीमती हमारा पानी , हमारी खेती , हमारा पर्यावरण है। उनका सही इस्तेमाल करना हमें सीखना होगा। क्योकि कपडे हमारे लिए बनते है , हम कपड़ो के लिए नहीं। हमें इस बात से फरक पड़ना चाहिए।
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fashion कितने टाइप के होते है ?
FASHION मुख्य तौर पर दो तरह के होते है।
१. SLOW FASHION
२. FAST FASHION -
SLOW FASHION मतलब क्या ?
पहले के ज़माने में मौसम के मुताबिक कपडे बनाये जाते थे। जैसे की सर्दियों में गरम कपडे और गर्मी में कॉटन के कपडे। इसे ही SLOW FASHION कहा जाता है।
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FAST FASHION मतलब क्या ?
हर हफ्ते नए नए ट्रेंड बाजार में आना और पुराने ट्रेंड जल्दी चले जाना इसे ही फ़ास्ट फैशन कहते है।
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FAST FASHION वाली कंपनिया कौन सी है ?
Primark, H&M, Shein, and Zara.
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